पंचतंत्र की कहानी - पानी और प्यासा कौआ

पंचतंत्र की कहानी - पानी और प्यासा कौआ

गर्मियों के दिन थे. दोपहर के समय बहुत ही सख्त गर्मी पड़ रही थी. एक कौआ पानी की तलाश में इधर – उधर भटक रहा था. लेकिन उसे कही भी पानी नहीं मिला. अंत में वह थका हुआ एक बाग में पहुँचा. वह पेड़ की शाखा पर बैठा हुआ था की अचानक उसकी नजर वृक्ष के नीचे पड़े एक घड़े पर गई. वह उड़कर घड़े के पास चला गया।

वहां उसने देखा कि घड़े में थोड़ा पानी है. वह पानी पीने के लिए नीचे झुका लेकिन उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी. ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि घड़े में पानी बहुत कम था।

पंचतंत्र की कहानी - रंगा सियार

पंचतंत्र की कहानी - रंगा  सियार

एक जंगल में एक बहुत ही दुष्ट सियार रहता था. जंगल के सभी जानवर उससे बेहद परेशान थे. यहां तक कि बाकी के सियार भी उससे तंग आ चुके थे, क्योंकि वो ख़ुद को सबसे श्रेष्ठ समझता था और यहां कि बात वहां लगाकर सब में फूट डालता था. एक दिन दुष्ट सियार शिकार की तलाश में जंगल से काफ़ी दूर निकल आया और एक बस्ती में जा पहुंचा. वहां कुत्तों की टोली सियार के पीछे पड़ गई. दुष्ट सियार जान बचाने के लिए भागा और भागते-भागते वो एक रंग से भरे ड्रम में जा गिरा. वो चुपचाप उस ड्रम में ही पड़ा रहा. जब उसे लगा कि ख़तरा टल गया, तो वो ड्रम से बाहर आया, लेकिन तब तक उसका पूरा शरीर ड्रम में भरे नीले रंग से रंग चुका था. वो जंगल में आया, तो उसने देखा कि उसके नीले रंग को देखकर सभी जानवर उससे डरकर भाग रहे हैं. सबको ख़ुद से यूं डरता देख दुष्ट सियार के मन में एक योजना आई.

पंचतंत्र की कहानी: व्यापारी का पतन और उदय

पंचतंत्र की कहानी: व्यापारी का पतन और उदय

एक शहर में कुशल व्यापारी रहता था. शहर के राजा को उसके गुणों के बारे में पता था और इसलिए उसने उसे राज्य का प्रशासक बना दिया. कुछ दिनों बाद व्यापारी ने अपनी लड़की का विवाह तय किया. इस उपलक्ष्य में उसने एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया. भोज में राजमहल में झाड़ू लगानेवाला सेवक भी शामिल हुआ था, मगर वह गलती से ऐसी कुर्सी पर बैठ गया, जो राज परिवार के लिए नियत थी. यह देखकर व्यापारी को बहुत ही क्रोध आया और वो आग-बबूला हो गया. उसने सेवक को भोज से धक्के देकर बाहर निकलवा दिया।

पंचतंत्र की कहानी: आलसी ब्राह्मण

पंचतंत्र की कहानी: आलसी ब्राह्मण

आलसी ब्राह्मण 

बहुत समय की बात है. एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. उसकी ज़िंदगी में बेहद ख़ुशहाल थी. उसके पास भगवान का दिया सब कुछ था. सुंदर-सुशील पत्नी, होशियार बच्चे, खेत-ज़मीन-पैसे थे. उसकी ज़मीन भी बेहद उपजाऊ थी, जिसमें वो जो चाहे फसल उगा सकता था. लेकिन एक समस्या थी कि वो ख़ुद बहुत ही ज़्यादा आलसी था. कभी काम नहीं करता था. उसकी पत्नी उसे समझा-समझा कर थक गई थी कि अपना काम ख़ुद करो, खेत पर जाकर देखो, लेकिन वो कभी काम नहीं करता था. वो कहता, “मैं कभी काम नहीं करूंगा.” उसकी पत्नी उसके अलास्य से बेहद परेशान रहती थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी. एक दिन एक साधु ब्राह्मण के घर आया और ब्राह्मण ने उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया. ख़ुश होकर सम्मानपूर्वक उसकी सेवा की. साधु ब्राह्मण की सेवा से बेहद प्रसन्न हुआ और ख़ुश होकर साधु ने कहा कि “मैं तुम्हारे सम्मान व आदर से बेहद ख़ुश हूं, तुम कोई वरदान मांगो.” ब्राह्मण को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. उसने कहा, “बाबा, कोई ऐसा वरदान दो कि मुझे ख़ुद कभी कोई काम न करना पड़े. आप मुझे कोई ऐसा आदमी दे दो, जो मेरे सारे काम कर दिया करे.”

पंचतंत्र की कहानी : चतुर खरगोश और हाथियों का झुंड

 पंचतंत्र की कहानी : चतुर खरगोश और हाथियों का झुंड 

एक वन में हाथियों का एक झुंड रहता था। झुंड के सरदार को गजराज कहते थे। वो विशालकाय, लम्बी सूंड तथा लम्बे मोटे दांतों वाला था। खंभे के समान उसके मोटे-मोटे पैर थे। जब वो चिंघाड़ता था तो सारा वन गूंज उठता था।

गजराज अपने झुंड के हाथियों से बड़ा प्यार करता था। स्वयं कष्ट उठा लेता था, पर झुंड के किसी भी हाथी को कष्ट में नहीं पड़ने देता था और सारे के सारे हाथी भी गजराज के प्रति बड़ी श्रद्घा रखते थे।

पंचतंत्र की कहानी - मूर्ख बातूनी कछुआ

मूर्ख बातूनी कछुआ


एक तालाब में एक कछुआ रहता था. उसी तालाब में दो हंस भी तैरने आया करते थे. हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे. इसलिए कछुए और हंस में दोस्ती होते देर नहीं लगी. कुछ ही दिनों में वे बहुत अच्छे दोस्त बन गएं. हंसों को कछुए का धीरे-धीरे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगता था. हंस बहुत बुद्धिमान भी थे. वे कछुए को अनोखी बातें बताते. ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते. हंस दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए उन्हें सारी दुनिया की बहुत-सी बातें पता होती थी. दूसरी जगहों की अनोखी बातें वो कछुए को बताते. कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता. बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी. अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे. गुज़रते व़क्त के साथ उन तीनों की दोस्ती और गहरी होती गई.